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________________ [सत्तरह] इसके अतिरिक्त सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंस, गुजराती एव राजस्थानी भाषा पर प्रापका पूर्ण अधिकार था। आपकी ज्ञानोपासना के सही प्रभाव को खोजने के लिए आपके द्वारा निर्मित कृतियों का पारायण करना ही अधिक उपयुक्त होगा। ज्ञान का फल है विरति "ज्ञानस्य फलं विरति' जैसे-जैस उनकी ज्ञानोपासना दृढ बनती गई वैसे-व से उनकी सयम साधना कठोर बनती गयो । त्याग और वैराग्य दिन प्रतिदिन बढ़ता गया। यही कारण था कि बहुत छोटी उम्र में ही श्रीमद् का झुकाव आध्यात्मिक और योग की ओर हुआ । आज का विद्यार्थी जिस आयु में अनुभव हीन, शुष्क ज्ञान का बोझ ढोता हुमा कालेजों की खाक छानता है वहां श्रीमद् ने केवल १६ वर्ष की अल्प आयु में संवत् १६६६ में पंजाब के मुलतान नगर के प्रतिष्ठित श्रावक मिठ मल भंसाली आदि योग साधना प्रेमी श्रावकों के अनुरोध पर ध्यान के गूढ रहस्यों से भरी ध्यान दीपिका चतुष्पदी नामक ग्रन्थ की रचना कर डाली। प्रवास और उपदेश-- श्रीमद् द्वारा रचित ग्रन्थों की प्रशस्तियां, चं त्यपरिपाटियां, तीर्थ स्तव एव देव विलास से स्पष्ट है कि आपका प्रवास राजस्थान, सिंध, पंजाब, गुजरात, एव सौराष्ट्र के प्रदेशों में अत्यधिक हुा । दीक्षा के बाद २० वर्ष तक तो आप राजस्थान सिंध, पंजाब में विचरण करते रहे । इन बीस वर्षों मैं मुलतान, बीकानेर, जैसलमेर, मरोठ आदि शहरों को छोड़कर आपके चातुर्मास कहाँ-कहाँ हुए, आपके द्वारा शासन प्रभावना के क्या क्या कार्य हुए, इसका कोई विवरण उपलब्ध नहीं होता । श्रीमद् ज से समर्थ विद्वान, सयम निष्ठ और बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न व्यक्ति (ग्रन्थरचना के अतिरिक्त) इतना लम्बा काल यों ही व्यतीत कर दें, यह बुद्धिगम्य नहीं होता । अतः इस सम्बन्ध में विद्वानों द्वारा समुचित खोज अपेक्षणीय है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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