________________
७८ ।
श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूब
सागर मुनि तिग' कोड़ि थी ए, कोड़ि थी मुनि श्रीसार।।से०॥ तेर कोड़ि थी सिव वरू ए, सोम श्री अणगार ॥से०।।६।। ऋषभवंश आदितजसा ए, तसु सुत आदित्य कांति ।से। एक लाख परवार सुं ए, पाम्या परम प्रसांति ।।से०॥७।। ऋषभ वंश मुनिवर बहुए, गणधर कोड़ि असंख ।से। सिव पुहता सिद्धाचलै ए, निरमम तें निरकख' से०॥ ८) दश कोडी थी शिव लहुयु ए, द्रावड़ ने वालखिल्ल ।से०। चवद सहस निग्रंथ थी ए, दमितारी निःसल्ल ।।से०।।६।।
आदिनाथ उपगार थी ए, कोड़ि सतर अणगार ।मे। श्रीअजित सेन मुनीस्वरुए, पाम्युं सुख अपार ।।से०।।१०।। आणंद रक्षित भावना ए, भावतां सिवपुर पत्त' से०। कालासी इग सहस थी ए, मुनि सुभद्र सय सत्त ॥से०।।११।। रामचंद्रपण कोडि थी ए, नारद मुनि पिस्ताल ।से। पांडव कोडी वीस थी ए, सिव पुहता समकाल ।।से०॥१२।। सब प्रजून मुनीश्वरू ए, मुनि साढा त्रिण कोड़ि से०।विमला चलि निरमलथया ए, ते प्रणमू बेकर जोड़ि ।।से०।१३।।
थावच्चा सुत सुक मुनी ए, सेलग पंथक सिद्ध ।से०। • वसुदेव घरणी सिव लहयुं ए, सहस पैंत्रीस प्रबुद्ध ।।से०॥१४॥
१-तीन करोड़ ५-सात सौ
२-आकांक्षा रहित ६-शांब-प्रद्युम्न
३-प्राप्त किया
४-एक हजार
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org