________________
द्वितीय खण्ड
[ ७७
तीरथनाथ विमल गिरिफरसना, करीये भवीयधरि सुचि वासना' । मुनिवर कोड़ि अनंता शिव लहें, ते संभार्या प्रतम गह गहे ||
गह है प्रतम सिद्ध क्षेत्रे तेह साधक पद वरे निज म पूरण चेतनाघन भाव जिहां छै सुख प्रत्यंत निरमल ग्रात्म विनाशि सत्ता सहज भाव तासु गुरगछीय कुरणगणै ||२२||
हाल (४) भरत नृप भाव सु ए-ए देशी
सेज गिरि भेटीये ए मेटिये कर्म कलेश । मिथ्या दोष निवारिवा ए, धारवो समकित देस | | ० ||१||
काल अनादि भवोदधिए, भमतां भव समुदाय से० ।
3
यान' पात्र सम जांणज्यो ए, एहिज तीरथ राय || से०||२||
मानव भव पामी करीए, ए तीरथ गुण गेह से० । जिण नवि भेटयो जुगतसुंए, ते दुखियां में रेह || से० ॥३॥
sri सीधा पण कोडिए, गणधर श्रीपुंडरीक से० । चैत्र सुकल पूनिम दिनए, निज सत्ता गुण ठीक | | ० ||४||
अक्षय अनुस परणामिक प
फागुण सुदि सातम लह्य ए, नमि विनमी सिव थान | से० चौसट्टि नमि पुत्री वसुए, आठमे केवलज्ञान || से० ||५||
१- पवित्र भावना
Jain Educationa International
२ - आत्मा ३- नौका समान
For Personal and Private Use Only
४-मुक्ति
५-चौसठ
www.jainelibrary.org