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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
निरमली मुद्रा तीर्थ पति नी तिहां संघवी सोमजी कर जोडि उभो तीर्थ सेवा याचना याचे अजी चौमुख सुदर च्यार जिनवर रिषभदेव जिणंदना
प्रहसमे अठी भक्ति चित्तै करो नित प्रति वंदना ।।१६।। समतासागर जिनवर देखीय, जनम सफल एहिज मन लेखियै । अरिहंत मुद्रा दीठां प्रापणी; साधक सकति वधै भव'कापणी।।
कापणी पातक पूर्व कृननीतीर्थ सेवा सारियै सुचि कारण निज सुद्ध सुचिता' भाव नियमा धारियै उद्धार अट्ठम सोमजो सुत रूपजी संघवी कर्यो
भव पंक' खूतो दीर्घकाजी आतमा इम उद्धर्यो ॥२०॥ बीजी भूमै देहरे उपरै, चौवीसी देहरी चोविस जिनवरे । बीजा जिन चोवीस तिहां अछ चोमुख इग गंभार मध्य छ ।
मध्य ए चोमुख तुंग चेइय गोख ध्वज कलसे करी सोभतो समकित हेतु भविन देखता चक्ष ठरी श्री शांतिनाथ विहार सुंदर राय संप्रति उद्धर्यो जिन बिंब अडयुत शांति जिनवर देखि मन हरखं वर्यो।।२१।।
१-भव का नाश करने वाली ४-उन्नत चैत्य
२-पवित्रता- ३-संसार रूपी कीचड़ में पं.सा हुआ
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