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द्वितीय खण्ड
पोले श्री नमि जिनवर देहरो, बिंब सत्तावन नमी भवभयहरो । बाहर भमती देहरी सुख करू, इक सो आठ अतिहि मनोहरू । मनोहरु जिनवर बिंब इग सय दोय बेठा बेसस्यै छत्तीस मंगल चैत्य इगसय सोल भविजन मन धसे शिवा सोमजी सुत रतनजी कृत शांति देव प्रसाद में
पंचास जिनवर सुद्ध मुद्रा नमो भवि आल्हाद में ।। १६ ।। देहरोसुविधि जिगेशर नो भलो, पार्श्वनाथ जिन चैत्य ने निरमलो । मुद्रा नव जिन दत्तसूरीश्वरू, कुशलसूरीश्वर खरतर गरणवरू । atras देहरी सिद्धचक्रेनी साह लाल विहार ए । जिन बिंब सत्तर च्यार अधिका करइ भवि निस्तार ए ।। देहरो सुमति जिरगद केरो साह ठाकुर उधर्यो ।
जिन बिंब ( स ) गणधार मंडप देखतां मुझ मन ठरर्यो । । १७ । । पगला तिहां चौवीस जिणंद नां, चवदह से बावन गरिण वृदना जेसलमेरी जिंदा थाहरू, तसुकृत पीठ अछे अति सुंदरु
सुंदर रायण रुख पास ऋषभ जिन पय वंदिये देहरी तीन उत्तंग देखी चित्त में आनंदिय श्री अजितनाथ विहार जिन नवर दोय गरिणवर थापना
गोमुख ने चकसरी तिहां भगत जन ने आसनां ।। १८ ।। सूरजी साह नो शांति विहार ए, जिनवर दोय जिहां सुखकार ए भमती तीजी चौमुख मांहिली, जिन मुद्रा प्रडयाल' छै निरमली
१- अड़तालीस
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