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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
जनम सफल ए करमासाह नो, जिरण चैत्य करयो बहु लाहनो। गज युग खंधे रे मरुदेवी मुदा, चक्की भरह करे सेवन सदा ।।
सेवना करतां सुद्ध निर्मल आत्म संपत्ति पामीय सेज तीरथ नाथ उसभो' देखि पातक वारीय तसु जनम सफलो सिद्ध खेत्रे जेण जिनवर भेटीया
चिरकाल दुसमन कर्म सगला तेहना भय मेटीया ॥१३॥ त्रिण सय बिंब ते मंगल चैत्यना, प्रणमे प्रहसम उठी नित्यना। आसय' दोष पासातन वारतां, लाभ अनंतो चैत्य जुहारतां ।।
जुहारतां जिनराज पडिमा, बली तीरथ ऊपरें ते वली विमल गिरीद ऊपर लाभ लेखो कुण कर जिहां कोड़ि मुनि परभाव परणति त्यागि आतम गुण वरया।
निज सुद्ध ध्याने सुद्ध ग्याने सिद्धता पद अनुसरया ॥१४॥ बीजे शृंगे रे कुंतासर अछ, इंद्र थूभ पण जिन पणतीस छ । अदबुद चेईम ऋषभ जिणेसरु, मोटी काय जग विस्मय करू ।
विस्मय करू श्री अजित चेइन कुंड जुगल रलीयामणा तिहां कुसुमवाडी मांहि गोयम चरण वंदों सुभमणा तसु आगले अड जीर्ण चेईय तिहां देव जुहारीय अति हरख धरतां पोल द्वारे चोमुख मांहि पधारियै ॥१५॥
१-ऋशभदेव २-मानसिक दोष ३-इन्द्र कारित चैत्य ४-अद्भुत बाबा
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