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द्वितीय खण्ड
समवशरण जिनराज विकासता, चोमुख रूपे देहरा सा सता । सोनी तिलक तणो चौमुख वरू, चोमुख दस सूरत ना सुदरू ॥
सुंदरु देहरी दोय जिनवर बिंब च्यार सुहामणा श्री रूख रायण जग प्रसिद्धो लीजिये तसु भामणा तसु तणे पगला रिषभजी ना वंदतां भव भय हरै
वीतराग भावे नाग' मोरी तजी वैर तिहां ठरै ।।१०।। देहरो इक चोविसी पावती, पंचावन जिन बिंब सुहावती। चौदह सय बावन गणधार रा, जिन चौवीसे चरण सुखकाररा।।
सुखकार चेइं समान वसही बिंब सग' चौमुख वली देहरी अमृत बाई यै तिहां शांति मुद्रा अति भली वलि सेठ लर,मीचंद शांतिदास कीधी देहरी
जिनराज तीन जुहारतां मनभ्रांति कस्मलता हरी ।।११। गाम गंधारे रे राम जी सेठ नो चौमुख सुंदर श्री परमेष्टि नो । ताजी भमती देहरी च्याल ए पणच्यूय बिंब तिहां अडयाल ए॥
अडयाल अहीया एक सय तिहां बिंब तीर्थ कर तणा तिहां मूल देहरे ऋषभजिणवर तरण तारण कारणा जिन बिंब सत्तावीस मंडप गंभारे छतीस रा जिनच नाभि नरिं: नंदन देखतां मन हींस रा ।।१२।।
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१-२.पं और मोर ६-सात चौ खा ३-गाप
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