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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयू
उल्लास थी श्री विजय तिलक, सासनाधिय जिनवरू। श्री वीरनाथ अनाथ नाथां वंदीये अति सुदरू ।। जगदीस त्रीस निरीह' निर्मम नमो धरी अभेदता ।
मिथ्यात्व प्रादिक भ्रमण हेतु मूल थी उच्छेदता ।।७।। सहसकूट नमो धरो भावना, तिन काल नारे जिननी थापना। मेघबाई नी देहरी वंदीयै, जिनवर तीन नमी पाणंदीय ।।
आणंदीय चौमुख जिन चौतीस पूठक मन रमों । श्री दीव संघ विहार जिनवर बिंब छत्तीस नमो ।। इहां अछ भुहरो तिहां जिनवर रामर सारंग थापना ।
वली मूलग वस ही नमे जिनवर बिंब नमीय निःपापना।।८।। श्री अष्टापद जिन चौवीस ए, बिंब अट्ठावन सुदर दीस ए। कीधो बाईगुलाल विहार ए, श्री समेतशिखर सुखकार ए ।।
सुखकार सार विहार सुदर कर्मभार निवारणो । श्री अजितादिक वीस जिनवर सिद्धक्षेत्र सुहामणो ।। जिहां वीस जिनवर सिद्ध ठवणां चरण वलि जिन देवना। वंदीय भवियण घण हरखै कीजीय सुचि सेवना ॥६॥
१- निस्पृह २- पीछे
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