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द्वितीय खण्ड
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वेदरभी नि:करमता' ए, सामी सल चोफाल ।से०। श्री बससार अनंतता ए, पामी गुण संभाल ।स०।१५।। सीधा बहु मुनि इण गिरवरे ए, यादव वंश अनेक ।ने। श्रेणिक कुल साधु साधवी ए, सिद्ध लह्या थिर टेक ॥से०॥१६॥ विद्याधर भूचर' घणा ए, इहां पाम्या गुण कोड़ि ।से।
आतम हेतें एहनी ए, कोन करी सकै होड़ि से०।।१७।। तीवारे तीरथ पति ए, ए तीरथ बहुवार से।
आज्या भविजन तारवा ए, निरमम निरहंकार ।।से०।१८।। पुंडर गिरिनी सेवना ए, जेह करइ भवि जीव ।से।
ते प्रातम निरमल करी ए, पामे सुख सदीव ।।से०।।१६।। ॥कलश।। इम सकल तीरथनाथ शेव्रुज, शिखर मंडण जिनवरो।
श्री नाभिनंदन जग प्रानंदन विमल शिवसुखप्रागरो॥ शुचि' पूर्ण चिदघन ज्ञान दर्शन सिद्ध उद्योतन मनै । निज आत्म सत्ता शुद्ध करवा वीर जिन केवल दिन ॥१॥ सुविहित खरतर गच्छ जिनचंद्र सूरि शाखा गुणनिलो। उवझाय वर श्री राजसारह सीस पाठक सिल तिलो॥ श्री ज्ञान धर्म सुसीस पाठक राजहंस गुणे वर्यो । तसु चरण सेवक देवचंद्र वीनव्यो जग हितकरो ।।२।।
॥ इति श्री शेत्रुज चैत्य प्रवाड़ संपूर्णम् ।।
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१-मुक्ति
२-मानव
३–पवित्र
४–ज्ञानपूर्ण
५-शिष्य
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