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द्वितीय खण्ड
गिरवर चढतां मुनिवर संचरे, जे सीधा इण तित्थो जी। प्रातम उद्धरवाने कारणें, परम पवित्र ए तित्थौ जी ।भा.॥७।। अनुपम देहरा सुदर अति भला, सूरजकुड भीमकुडे जी । जिनवर दोय चरण जगनाथ ना, प्रणम्यां पातक खंडे जी ।।भा.।।८।। उलखाझोले रे श्री जिनवर नमी, चेलण तलाई आणंदो जी। सिद्धशिला तिहां मुनि निज गुण वरी, पाम्या परमाणंदो जी ।।भा.॥६॥ हरख धरी ने सिद्धवडे वली, समरो सिद्ध मुरिंणदो जी।
आदिपुरे जिनवर चौवीस ना, प्रणमी पय' अरविंदो जी ।भा.।।१०।। पालीताणा पाजै अनुक्रम, पाव्या पोल दुवारो जी। वाघणि पोले मंडप चैत्य नो, दीठो सुचि दीदारो जी।भा.।।११।। वाघरिण प्रतिबोधी आचारजै, थई कषाय विहीनो जी । ए तीरथ न तजे जे पाप ने, ते तिरजंच' थी दीनों जी ॥भा.॥१२॥ हनुमंत खेत्रपाल चक्रेसरी, गोमुख कवड़ अंबाई जी । आदिक सासन सेवक देवता, भगति वंत सुखदाई जी ।।भा.॥१३॥
ढाल (३) सहस समण सुसुक संजम धरो-ए देशी। प्रथम प्रवेसे रे नेमि जिणेसरू, चेईय सुदर अतिहि सुहंकरु । जिणवर बिंब परम सम कारणं, त्रिण में सोल नमो दुख वारणं ।।
१-पद कमल।
२-पशु-पक्षी।
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