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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पं.यूष
सुद्धता कारणं मोहभड' वारणं । दंसण नाण उज्जाण' पडिबोहणं ।। दीह . संताण कम्मर विद्धंसरणं । कुणह भव्वुत्तमा विमलगिरि दंसणं ।।६।।
ढाल (२) (चरण करणधर मुनिवर वंदिय-ए देशो) भाव धरि नै चैत्य जुहारिय, श्री सिद्धाचल अंगे जी । जिण दंसण पूयण गुण संथुई, करो भविक मन रंगे जी । भा.॥१॥ पालीतारणं रे ऋषभ जिरणेसरु, तास प्रभु भय टाल जी। ऋषभ चरण वंदो मन नी रली, ललित सरोवर पाल जी ॥भा.॥२॥ गिरवर मूलें सुदर वावड़ी, जिहां भवि अंग पखाले जी। . तीरथ वधावी वंदी नै चढे, आतम गुण उजवाल जी ।भा.।।३।। पाजै चढतां रे नेमि जिणेसरु, यादव कुल आधारो जी। चरण नमी ने गिरिवर ऊपर, हरख धरी पधारो जी भा.।।४।। धोली परब रे भरह भरहवई, चरण नमो सुभ कामी जी। महला संग थकां पिण मोहनें, खंडी नै सिव पामी जी ॥भा.॥५॥ नेमि चरण वंदी में परवतें, आरोहै आणंदे जी । आदिनाथ पुंडरीक गणी तणा, भवियण पय जुग वंदै जी ।भा.॥६॥
२-बगीचा। .
३-विकासक ।
१-मोहरूपी सुभट। ५-चरणयुगल।
४-पधारना।
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