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द्वितीय खण्ड
जंगम तीर्थ परसिद्ध गुण गण भरचा । तीर्थ थिर पंच सज्जेह जे प्रणु सरचा ॥४॥ तेरण विमलाचलो तित्थ गुण आगरो । मुनि गण संथुप्रो गरिम धीरम धरो ।। रिसह जिरण राय बहु वार जिहां आविया । पुंडरीकादि मुरिण सिद्ध पय पावीया ॥ विमलगिरि नाम जे भत्ति भर थी जवे । सिद्धगिरि दंसरण सुलह बोही हवै ॥ (सिद्धगिरि) फासणा कम्म' रय मोहणी । सम्म दंसरण पमुह गुणह आरोहणी ।।६।। तित्थ सत्रुजउ जिण भवरण जुत्तउ । पुब्व बहु पुरण पब्भार थी पत्तउ ।। ठवण जिण भाव जिण भेद नवि प्राणीयै । झारण'. पय रोहण कारण जाणीयै ।।७।। तेण आलस तजी तित्थ सेवन करो। पाश्रव . पंक थी आतमा उद्धरो ।। 'घेईय विणयादिक निज्जरा उपदिसी । - दसम अंग ववहार सुत्ते वसी ॥८॥
कर्मरूप रज का नाश करने वाली । २-ध्यानपद पर चढ़ने के लिये प्रबलकारण ।
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