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श्रीमद देवचन्द्र पर पीयू
शत्रुजय चैत्य परिपाटी
(ढाल (१) सफल संसार अवतार एहुं गिणू-ए देशो)
नमवि अरिहंत पयरगत' गुण आगरा, खविय' कम्मट्ठगा सिद्ध सुह' सागरा। तीस छग गुणजू प्राधार सूरीश्वरा, वायगा' उत्तमा नाण वायण धरा ।।१।। विष समा काम भोगादि सवि परिहरी । शुद्ध शिव साधिवा साधना आदरी ।। टाण एकांत तित्थादि सुचि' वासियो । दुविह तप संगया वंदिमो यति गणो ॥२॥ जयवि जग मांहि जिहि ठाणि जिय गुण लहै । तेण थानक भणी तेह उत्तम कहै ।। . जगत उपगारि परिसिद्ध बहु गुण थवै । मुनि भणी जिनवरा सिद्ध कारण चवै ॥३॥ तीर्थंकर केवली सुयधरा मुनिवरा । भासए तीर्थ जंगम तहा थावरा ।। ...
१-पद-पैर, अणत। २-क्षयकर। ३-सुख । ४-छत्तीस गुणयुक्त । ५-उपाध्याय। ६-पवित्र । ७-स्तुतिकरना। .
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