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________________ श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष दुख वारणा जिन बिंव नमतां होइ समकित मोहिलो । समता' सुधारस कुड जिनवर देव दरसन दोहिलो ।। जिहां चेई मंगल तास छ गज्ज भरतसाह मंडावीयो । दुख हेतु परिग्रह सकल जाणी सुद्ध क्षेत्रे वावीयो ।।१।। जिणवर चैत्य जुगल तसु पागलै, अरिहा तीन नमो अति मंगलै । जैमलसाह तणो चौमुख वरु, श्री पुरुसोत्तम सोलम सुहंकरु ।। सुहकरु श्री कुथु जिनवर तेम चंद्रप्रभु तणो । जिनराज बिंब ईग्यार मंडित परम सुचि सिद्धायणो । श्रेयांसतिम श्री शांति जिनवर चैत्य जुगल सुहामणा । इगतीस बिंब जुहारि भगतै पवित्र थावो भवीयणा ।।२।। सद्धा वुहरा कारित देहरो, देहरी सुदर मंडित सेहो। मूल गंभारे ऋषभ जिणेसरु, बत्तीस बिब नमो समताधरू ।। समताधरु जिनराज नगतां कर्म कलंक गलै घरणा । अति शुद्ध निर्मल परम अक्षय रूप प्रगटइ आपणा ।। श्री वीतराग प्रशांत मुद्रा देखतां जो सांभरइ । निज सुद्ध साध्य एकत्व करतां प्रात्म साधकता वरइ ।।३॥ वलि प्रवेशे रे जिमणी श्रेरिण में, समवशरण श्री वीर तगो नमै । • पास विहार भंडारी कृत थयो, कुथनाथ चेइय जिन गुणथयो ।। १-समत्वरूपी अमृतरस । २-नाम । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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