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प्रथम खण्ड
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श्री वीर जिननिर्वाण स्तवन
( वैरागी थयो-ए देशी) मारग देसक मोक्ष नो रे, केवल ज्ञान निधान । भाव दया सागर प्रभू रे, पर उपगारी प्रधान रे ।।१।।वी०।। वीर ते सिद्धि थया, संघ सकल आधारो रे । हिव इण भरत मै, कुण करस्यै उपगारो रे ॥२॥वी०।। नाथ विहगतो सैन्य जू रे, वीर विहरणो संघ । साथै कुरण अाधार थी रे, परमानंद अभंगो रे ।।३।। वी०।। मात विहूणो बाल ज्यू रे, अरहा परो अथड़ाय। . वीर विहूणा, जीवड़ा रे, आकुल व्याकुल थाय रे ॥४॥वी०।। संसय छेदक वीर नो रे, विरह ते केम खमाय । जे दीठे सुख ऊपजै रे, ते विणुकिम रहवायो रे ॥५॥वीoll निरजामक भव समुद्र नो रे, भव अडवी सथवाह । ते परमेश्वर विणु मिल्यै रे, केम वधै उच्छाहो रे ॥६॥वी०।। वीर थकां पिण श्रुत तणो रे, हतो परम प्राधार । हिवणां श्रुत आधार छे रै, अह जिन मुद्रा सारो रे ॥७/वी०॥ तीनकाल सवि जीव नै रे, प्रागम थी आनंद । जिन पडिमा अागम विधैरे, सेव्यां परमाणदो रे ॥८॥वी०॥ गणधर प्राचारिज मुनी रे, सह नै इण विधि सिद्धि । भव भव आगम संघ थी रे, देवचंद्र पद सिद्धी रे ।।६।।वी०॥
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