________________
४६ ]
मुख दीठें सुख ऊपजें,
समरंता सुख थाय ।
सुख ने माथे शल्य पड़ो, पीरहृदय थी जाय ॥ १ ॥
श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयू
परमातम परमेसरू, अकल ग्ररूपी अमाय ।
वीर नाम मुख थी वदें, जीहा पावन थाय ॥२॥ असंख्यात प्रदेश मां, जहां दिल मां वीर । ते नर भवसागर तरी, पामे वहेलो तीर ॥३॥ वीर विरह घड़ी एकलो, जेह थी खम्यो न जाय । तेहने मोक्ष नजीक छे, दुरगति दूर पलाय ॥४॥
जावो हीरो परखीयो नग मां श्री महावीर ।
ते माटे तुमे भविजना, वंदो जगगुरू धीर ||५||
वीर जिरणेसर गुण घरगा, कहेतां नावे पार । तेणें कारणें श्री वीरनें, वंदो वारंवार ||६||
निः कामी प्रभु पूजना, करसें जे धरी नेह ।
शिव सुंदरी निश्चयलही, स्वयंवर बरसेंतेह ||७||
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org