________________
प्रथम खण्ड
वीयराय बंदनः भव निकंदन गुण प्रानंदन पावता परमात्म • सेवन. अहव सिद्धी एह ईहा ल्यावेता ॥३।। श्री वीरेंजी गौतम गमगाधर मोकल्या । प्राणाकरजी देवशरमा · 'बोधन चल्या ।। जिण पारसजी हित, मुख. मंगल कार..ए ।
इम जागीिजी गमधर करै विहार एः।। छूटक-नव राय लच्छी तवे मल्ली वीर वचनर से रस्या
निज, देखा चिता तजी जिन पद सेवना; करवा वस्या मुर राय चौसठि तिहां अाव्या सिद्धि अवसर जाणता श्री वीर दर्शन नमन कीर्तन परम सुख मन प्राणता ॥४॥
॥हा॥ फासी वदि चबंदिशा दिने प्रातसमें जिनराय ।। सिंहासन बैठा जिसे। तब रेभा': गुण गाय ।।६।। (४) ढाल-जीरियानी अथ सोहलानी देशी वाल्हेस.रः । त्रिसला. देवी : नंदा । दीठो हो । दीठो अमृत घन समौ ।। सोभागी स्थामि सोभागी सिद्धिवधू भरतार। मोहन हे मोहन मूरति नित नमौ । उपगारिस्वाभि । १॥ तुम्हे गावो हे तुम्हे मावो गुरण धरि मन प्रेम, -जेमनहे . जेमेन , जावो : दुरगते : उप० । चिरजीवो हे चिरजीवो गतिम गुरू राय, - नित प्रति हो नित प्रति पूज्यो सुरत ते उप०. ॥२॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org