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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
अतुली बल हे अतुली बल याचौ जगनाथ, जिरण जीतो हे जिण जीतो मोह सुभट जरू ।उप०। बूठो हे बूठो आज अमीय मय मेह, सफलो हे सफल फल्यो घरि सूरतरू उप० ॥३॥ जय जय हे जय जय जगजीवन जगबंध, सिद्धारथ हे सिद्धारथ नृपकुल तिलउ ।उप० । तुठा हे तुठा ग्राज सवि कर्या पुण्य भेटयो, हे भेटयो जिनवर गुण निलउ ॥उप०॥४॥ बलिहारी हे बलिहारी वार हजार तू, ज्ञानी हे तू ज्ञानी गुगा सेहरो ।उप०। जंगम हे जंगम तीरथ शिव सुखकंद, निश्चय हे निश्चय शिव सख देहरो उप०।५।। इंद्रादिक हे इंद्रादिक ना प्राणाधार, जीवो हे जीवो कोड़ि जुगां लगे ।उप०। जसु दीठे हे दीठे नासे दुःख अंधार, भामंडल हे भामंडल दिनकर झिगमगे ॥६॥ उ०।। त्रिभुवन पति हे त्रिभुवनपति तुझ, वचन सवाद मोह्या हे मोह्या सुरपति नरपति जी ।उप० । तूही हे तू हि भव भवनाथ दयाल, करीये हे करीमे इण विधि वीनती जी ॥उ०॥७॥ तरीये हे तरीये भव सागर दुख भूरि, ..... हरीये हे हरीय कर्म महा अरी उप०।
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