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१० अन्तिम केवली जम्बूस्वामी
सोलह वर्ष का सुन्दर कुमार है। सोने के हिंडोलेदार पलंग पर बैठा है। हाथ में हीरे से जड़ी हुई रेशमी रस्सी है, जिसके द्वारा वह कड़ाक-कड़ाक झूले ले रहा है । इस कुमार का नाम है-जम्बू ।
क्रोडाधिपति ऋषभदत्त का वह पुत्र है। उनकी माता का नाम है धारिणी । सेठ के यही एक पुत्र है, अतः लाड़-प्यार में किसी भी प्रकार की कमी नही रखी गई। । शहर की अच्छी से अच्छी आठ कन्याओं के साथ थोड़े ही दिन पहले इस कुमार की सगाई हो चुकी है। .. एक दिन वन के रक्षक ने आकर बधाई देते हुए कहा,-कि "सेठजी ! वैभारगिरि पर श्री सुधर्मास्वामी पधारे हैं।
समता के सरोवर तथा ज्ञान के समुद्र गुरुराज के पधारने से किसे प्रसन्नता नहीं होती ? जम्बूकुमार का हृदय हर्ष से उछलने लगा। उसने हिंडोला बन्द किया और गुरू के पधारने की खुशखबरी लाने के इनाम में अपने गले से मोती की माला निकाल कर वनपालक को दे दी। वनपाल प्रसन्न होकर चला गया। - जम्बूकुमार ने सारथी से कहा-“सारथि ! रथ जल्दी तैयार करो, वैभारगिरि पर गुरूराज पधारे हैं, मैं उनके दर्शन करने को जाऊंगा।" . सुन्दर सामिग्रियों से सुशोभित रथ तैयार किया गया। उसमें बैठकर जम्बूकुमार वैभारगिरि को चले । वैभारगिरि राजगृही के बिलकुल नजदीक थी, अत: वे थोड़े ही समय में वहां पहुंच गये।
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