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[ जैन कथा संग्रह
इस तरह अभयकुमार सब सेठ साहूकारों तथा अमीर-उमरादों के यहाँ घूमे, किन्तु किसी ने भी अपने कलेजे का मांस न दिया और सबके सब रुपये पैसे देकर छूट गये । अब अभयकुमार को ढेर की ढेर सम्पत्ति प्राप्त होगई । दूसरे ही दिन उस धन को लेकर अभयकमार राजसभा में आये और बोले - "महाराज ! इतने अधिक धन के बदले में सवा तोला माँस भी नहीं मिलता ।" यह मुनकर सब दरबारी लोग लज्जित होगये । तब अभयकुमार ने फिर कहा"मांस सस्ता अवश्य है, किन्तु वह केवल दूसरों का अपने शरीर का माँ तो अधिक से अधिक मूल्यांकन माना जाता है ।
अभयकुमार की बुद्धिमानी के, ऐसे ऐसे अनेकों उदाहरण हैं । यही कारण है कि लोग भी यह इच्छा करते हैं कि हममें भी अभयकुमारकी - सी बुद्धि हो ।
( १२ )
महाराज श्रेणिक ने, अभयकुमार को राजगद्दी के लायक देखकर आग्रह किया कि - "हे पुत्र ! तुम इस राज्य का उपभोग करो। मेरी इच्छा भगवान महावीर से दीक्षा लेने की है ।" किन्तु अभयकुमार ने कहा - " पिताजी ! मुझे राज्य की आवश्यकता नहीं है, मैं अब अपनी आत्मा का कल्याण करना चाहता हूँ । प्रभु महावीर से दीक्षा लेने की मेरी भी बड़ी इच्छा है । आप इसके लिये मुझे आज्ञा दीजिये ।"
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राजा श्रेणिक ने, राज्य ले लेने के लिये बड़ा आग्रह किया, किन्तु अभयकुमार अपने निश्चय पर दृढ़ रहे । अन्त में एक प्रसंग विशेष से प्रसन्न होकर श्रेणिक ने आज्ञा दे दी ।
बुद्धि के भण्डार अभयकुमार ने साधु होकर पवित्र जीवन बिताना प्रारंभ किया, और संयम तथा तप से आत्म-शुद्धि करने लगे। बहुत दिनों तक ऐसा जीवन व्यतीत कर, उन्होंने अपनी जीवनलीला समाप्त की ।
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