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________________ बुद्धिनिधान अभयकुमार ] [ ५५ पीना किसी आवश्यक कार्य के लिए भी अग्नि न जलाना, और स्त्री के साथ का संबंध छोड़ देना, यह कार्य तो हम से नहीं हो सकते ।" .. अभयकुमार ने कहा-"तब यह रत्न उन लकड़हारे मुनि के हो गये, जिन्होंने ये तीनों चीजें छोड़ दी हैं।" - लोगों ने जान लिया-'कि लकड़हारे मुनि सचमुच पूरे त्यागी हैं, तभी अभयकुमार उनकी प्रशंसा करते हैं। हम लोगों ने नाहक ही उनको हँसी की और उन्हें चिड़ाया।" फिर अभयकुमार मे लोगों को शिक्षा दी, कि अब भविष्य में कोई भी उन मुनि से मजाक न करें और न उनका अपमान ही करें। ( ११ ) एक बार, राजा श्रोणिक ने अपनी सभा में पूछा, कि-"सबसे अधिक मूल्यवान कौनसी चीज है।" किसी ने कहा हीरा। कोई बोला मोती। तब अभयकुमार ने कहा-सबसे अधिक कीमती मांस है । अभयकुमार का उत्तर सुनकर सब लोग बोल उठे, यह" बात गलत है, मांस तो अधिक से अधिक सस्ती चीज है।" अभयकुमार ने कहा"अच्छा मौका आने पर बताऊंगा।" थोड़े दिनों के बाद, अभयकुमार एक सेठ के यहां गये और उनसे कहा-'सेठ जी राजा श्रेणिक, बीमार पड़ गये हैं। वैद्य लोगों ने बतलाया है कि ये और किसी भी तरह से नहीं बच सकते। इनकी एक ही दवा है मनुष्य के कलेजे का सवा तोला माँस। यदि यह दवा मिल जाय तो राजा अच्छे हो जायें, "अतः मैं आपके पास यही लेने को आया हूँ।" अभयकुमार की बात सुनकर सेठ घबरा उठे और बोले"सरकार ! मुझसे पाँच हजार रुपया ले लीजिये, और मुझे जीवित रहने दीजिये । आप किसी और से यह माँस ले लीजियेगा। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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