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बुद्धिनिधान अभयकुमार ] का दुख रह सकता है ? राजा श्रेणिक को जब कभी किसी आपत्ति का सामना करना पड़ा, तभी अभयकुमार ने अपनी बुद्धि से उस संकट को दूर कर दिया । वे सदैव राजा की सहायता के लिए तैयार रहते थे।
एकबार राजा श्रेणिक चिन्ता में बैठे थे । उसी समय अभयकुमार वहाँ आये । राजा को चिन्तित देख, उन्होंने पूछा-"पिताजी, आप चिन्ता में क्यों बैठे हैं ? श्रेणिक ने उत्तर दिया । वैशाली के राजा चेड़ा ने मेरा अपमान किया है। उनके दो सुन्दर कन्यायें हैं, उनमें से एक के साथ मैंने अपना विवाह करने की इच्छा प्रकट की। उत्तर में उन्होंने कहा-"तुम्हारा कुल मेरे कुल की अपेक्षा हल्का है, अतः मेरो कन्या तुम्हें नहीं दी जा सकती।" अभयकुमार ने कहा कि-"ओहो, यह कौनसी बड़ी बात है ? छः महीने के अन्दर ही मैं उन दोनों कुमारियों का विवाह आपके साथ करवा दूंगा । पिताजी, आप जरा भी चिन्ता न कीजिये।"
घर आकर अभय ने अपने नगर के चतुर चित्रकारों को बुलवाया और उनसे कहा-"महाराज श्रेणिक का एक सुन्दर चित्र तैयार करो। अपनी सारी कला लगाकर उसे अच्छे से अच्छा बनाओ और ध्यान रखो कि उसमें जरा भी कसर न रहने पावे ।" चित्रकारों ने रात दिन परिश्रम करके एक सुन्दर चित्र तैयार किया। अभय ने भी चित्रकारों को खूब इनाम देकर प्रसन्न किया।
उस चित्र को लेकर अभयकुमार वैशाली आये । वहां आकर उन्होंने अपना नाम धनसेठ रखा । और राजमहल के नीचे अपनी दुकान खोली। उनकी दुकान पर तरह-तरह के इत्र-तेल आदि बिकते और दूसरी भी अनेक प्रकार की वस्तुयें बिकती थीं। धनसेठ बड़ी मीठी वाणी बोलते थे। जो ग्राहक उनके यहाँ माल लेने आता,
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