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[ जैन कथा संग्रह श्रेणिक-"तुम अपने यहाँ के भद्र सेठ को जानते हो?" अभय-हाँ, महाराज, "बहुत अच्छी तरह जानता हूँ।"
श्रेणिक-"उनकी नन्दा नामक पुत्री गर्भवती थीं, उसके क्या हुआ था ?
अभय-"महाराज, उसके पुत्र हुआ था।"
श्रेणिक-"उस लड़के का नाम क्या रखा गया ?" . अभय-"महाराज, सुनिये ! आप जिस समय भयंकर युद्ध कर रहे हों, उस समय आपका शत्रु आपसे भयभीत हो जाय । फिर वह अपने मुंह में एक तिनका लेकर आपके सामने आवे, तो बतलाइये, उस समय वह आपसे क्या मांगेगा?
श्रेणिक-"अभय"
अभय-"महाराज, तो उसका भी यही नाम है, उसकी और मेरी बड़ी गाढ़ी मित्रता है। किन्हीं मित्रों के मन तो एक होते हैं किन्तु शरीर अलग-अलग होते हैं । परन्तु मेरा और उसका मन तो एक है ही पर शरीर भी एक ही है।"
श्रेणिक -"तो क्या तुम स्वयं अभय हो।" अभय-"हाँ, पिताजी, आपका सोचना ठीक है। श्रेणिक-- "तो नन्दा कहाँ और किस तरह है ?"
अभय-"पिताजी, वे नगर के बाहर एक भले आदमी के यहाँ ठहरी हुई हैं और आपके वियोग में अत्यन्त दुखी हैं।"
अभय की बात सुनकर राजा श्रेणिक बड़े प्रसन्न हुए। वे बड़ी धूमधाम और गाजे-बाजे से नन्दा को शहर में ले आये और उसे अपनी पटरानी बनाया । अभय को उन्होंने अपने प्रधानमन्त्री का पद दे दिया।
- जहाँ अभय के समान बुद्धिमान-प्रधान हो, वहां किस बात
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