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बुद्धिनिधान अभयकुमार ]
उन मनष्यों ने कहा भाई-"यह तुम्हारा काम खेल नहीं है। इसमें बड़े-बड़े बुद्धिमानों की बुद्धि भी चकरा रही है, तो तुम क्या कर सकते हो?"
अभय बोला-“जी हां, मेरे लिये तो यह काम खेल ही है.. किन्तु क्या मेरे समान परदेशी मनुष्य भी इस परीक्षा में भाग ले सकता है ?"
मनुष्यों ने उत्तर दिया-"इसमें क्या बात है ? कहावत मशहर है, कि 'जो गाय चरावे' वही ग्वाला।" यदि तुम सचमुच इसे निकाल सको, तो अवश्य ही तुम्हें प्रधानमन्त्री पद मिलेगा। - अभय कुए पर आया। उसे देखकर लोग आपस में कानाफसी करने लगे-कि यह लड़का क्या कर सकता है ?" कुए पर पहुँच कर अभय ने ताजा गोबर मँगवाया और उसे अँगूठी के ऊपर डाल दिया। इसके बाद थोड़ी सी सूखी घास मँगवाई, उसे सुलगाकर ठीक उसी गोबर पर डाल दी। आग की गर्मी के कारण वह गोबर सूख गया और वह अँगूठी भी उसी में चिपक गई। फिर उसने पास ही के एक पानी से भरे हुए कुए पर से उस कुए तक एक नाली खुदवाई और उसीके द्वारा उस खाली कुए मे पानी भरना शुरू किया। भरते-भरते जब पानी ऊपर तक आगया तब वह कंडा भी ऊपर आ गया। अभय ने उस कंडे को उठा लिया और उसमें से वह अंगूठी निकाल ली। जितने लोग खड़े थे वे सब अभय की चतुराई देखकर बोल उठे, "इस लडके की बुद्धि तो कमाल है।".
राजा के जा सिपाही मोजूद थे, उन्होंने जाकर राजा से यह बात कही। राजा ने तत्क्षण अभय को बुलाया और उससे पूछा-"बेटा, तुम्हारा क्या नाम है और तुम कहां के रहने वाले हो ?"
अभय-"मैं वैणातट का रहने वाला हूँ और मेरा नाम अभय है।"
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