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________________ ४२ जैन कथा संग्रह शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता। उस नगर में महलों, मन्दिरों, बाजारों तथा चौकों की सुन्दरता अपार थी। नन्दा और अभय दोनों राज गृह आये और वहां अफर एक गृहस्थ मनुष्य के यहाँ ठहरे। उसके बाद अभय शहर की शोभा देखने को निकला। वहां उसने एक स्थान पर बहुत से मनुष्यों की भीड़ जमा देखी । यह देखकर अभय ने विचा' कि, आखिर ये लोग यहाँ पर क्यों इकट्ठ हुए हैं ? अवश्य ही कोई देखने के काबिल बात यहां होगी । अच्छा मैं स्वयं ही पूछ कर देख कि आखिर मामला क्या है ? उसने भीड़ के पास जाकर एक बूढ़े से पूछा-"बाधा ! यहां क्या बताशे बांटे जा रहे हैं ?" बूढ़े ने कहा- "भाई ! ती तो बताशे बहुत अच्छे लगते हैं, किन्तु यहाँ तो बताशों से भी अच्छी चीज बांटो जा रही है।" __ अभय-"वह क्या ?" बूढ़ा-वह है, महाराजा श्रेणिक का प्रधानमन्त्री पद । उनके यहाँ प्रधानमन्त्री का पद आजकल खाली है। यों तो यहाँ चारसौ निन्नानवे कार्यकर्ता हैं, किन्तु उनमें एक भी ऐसा नहीं हैं, जो प्रधानमन्त्री के पद का कार्य कर सके। उस स्थान पर तो वही मनष्य कार्य कर सकता है, जो बुद्धि का भंडार हो। यही कारण है, कि राजा ने ऐसे मनुष्य की खोज करने के लिये खाली कुए में अँगूठी डलवाकर यह घोषित किया है कि जो मनुष्य कुर के किनारे पर खड़ा होकर इस अंगूठी को निकाल देगा, उसे ही मैं अपने प्रधानमन्त्री का पद दूंगा। यह सुनकर अभय उस भीड़ में घुसा और वहां इकट्ठे हुए मनुष्यों को सम्बोधन कर बोला--"अरे भाइयो! आप लोग इतनी अधिक चिन्ता में क्यों पड़े हैं, कुए में से अँगूठी निकालना कौनसी बड़ी बात है ?" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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