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[ जैन कथा संग्रह पिता जी, हम सब तो दूसरे की उन्नति न देख सकने वाले हैं। और एक आपका धन्ना ही अच्छा है । आप हमारी कभी भी बड़ाई नहीं करेंगे।
एकबार गोदावरी नदी में एक जहाज आया । जहाज में बहुत कीमती किराना भरा हुआ था। किराने का स्वामी मर गया था, इसलिए सब किराना राजा के अधिकार में आगया। राजा ने सब व्यापारियों को एकत्रित होने तथा जहाज का किराना खरीदने की आज्ञा दी । सब व्यापारी इकट्ठे हुए।
धनसार सेठ के यहाँ भी राजा का बुलाबा आया कि आप आपने यहाँ से भी किसी एक व्यक्ति को राजा का बिकता हुआ किराना खरीदने के लिए भेजिए। राजा के बुलावे पर धनसार सेठ ने अपने सबसे बड़े लड़के से कहा, "धन्नदत्त, किराना खरीदने के लिए जा" धन्नदत्त ने पिता के उत्तर में कहा कि 'प्रशंसा करने के लिए तो धन्ना याद आता है। और काम करने के लिए धन्नदत्त से क्यों कहते हैं ? मैं तो नहीं जाता। आपका समझदार लड़का ही जायगा।".
धनसार सेठ ने अपने दूसरे तथा तीसरे लड़के से भी राजा का किराना खरीदने के लिए जाने को कहा। लेकिन उनने भी धनदत्त की तरह ही उत्तर दे दिया। तब धनसार सेठ ने धन्ना से कहा-"बेटा, तू जा।" धन्ना ने कहा "जो पिता की आशा है, वही करूंगा।" यह कहकर धन्ना किराना खरीदने गया।
जहाज पर सब व्यापारी एकत्रित हए। जहाज के किराने में से किसी व्यापारी ने केशर, किसी ने कस्तूरी, और किसी ने बरास लिया। इसी प्रकार कपूर, चन्दन, अगर, आदि समस्त अच्छा-अच्छा किराना ले लिया। पीछे से केवल नमक की तरह की मिट्टी का देर ही रह गया।
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