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वीर धन्ना ]
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करें । इस प्रकार विचार कर सेठ ने अपने सब लड़कों को बुलाया । लड़कों को थोड़ी थोड़ी सोने की मुहरें देकर सेठ ने सबसे कहा कि "इस बार भूल मत जाना, सब ध्यान रखकर इस सोने की मुहरों से कमाई करना । संध्या के समय सब घर को लौट आना । और अपनी आमदनी सबको बताना ।"
सब लड़के सोने की मुहरें लेकर चले । एक भाई एक तरफ गया और दूसरा भाई दूसरी तरफ गया । इस तरह चारों भाई पृथक-पृथक हो गये ।
धन्ना बाजार में गया बाजार में एक सुन्दर पलंग बिक रहा था, लेकिन बेचने वाला श्मसान का भंगी था, इसलिये कोई नेता न था । पलंग को देखकर धन्ना ने विचार किया, कि पलंग निश्चय ही कोई करामात है, इसलिये पलंग को खरीद लेना अच्छा रहेगा । इस प्रकार विचार कर धन्ना ने उस बिकते हुए पलंग को ले लिया ।
वे तीनों भाई खूब दौड़े, घूमे, लेकिन कुछ न कमा सके । निराश होकर घर लौटे। घर में धन्ना के लाए हुए पलंग को देखकर तीनों भाइयों ने धनसार सेठ से कहा - पिताजी, अपने समझदार लड़के को देखो, यह पलंग तो मुरदे का है। इसे क्या घर में रखा जा सकता है ? हम तो इस पलंग को घर में न रहने देंगे । इस प्रकार कहकर तीनों भाई उठे और उस पलंग को उठाकर बाहर पटक दिया | पटक देने से पलंग की पट्टी व पाये अलग-अलग हो गए और इसमें से बड़े कीमती रत्न निकले ।
तीनों भाई चकित रह गए और मुँह में अँगुली दबाकर इन रत्नों की ओर देखने लगे । सेठ ने तीनों लड़कों से कहा कि कहो धन्ना को बड़ाई न सह सकने वाले लड़को ! धन्ना की परीक्षा हो गई या और बाकी है ?" तीनों भाई पिता से कहने
लगे कि हाँ
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