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जैन कथा संग्रह ]
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फिर क्या हुआ? फिर, सेठानी ने सब नौकरों को बुलाकर धमकाया कि"खबरदार ! यदि किसी ने सेठ जी से यह बात कही तो वह कहने वाला अपनी जान की खैरियत न समझे।" इस तरह नौकरों को भय दिखलाकर, सेठानी जी अपने पीहर को चली गई।
शाम होने पर सेठ जी घर आए। इधर-उधर देखा किन्तु कहीं भी चन्दनबाला न दिखायी दी । अतः इन्होंने नौकरों से पूछा''चन्दनबाला कहाँ है ?" किन्तु सेठानी के भय के मारे किसी ने भी उत्तर न दिया। सेठ ने सोचा कि कहीं इधर-उधर खेल रही होगी।
दूसरे दिन चन्दनबाला को न देख, सेठ ने नौकरों को इकट्ठा कर उनसे फिर पूछा-"चन्दनबाला कहाँ है ?" उस समय भी किसी ने उत्तर न दिया।
सेठ ने फिर सोचा कि कहीं इधर-खेल रही होगी। जब तीसरे दिन भी उन्होंने चन्दनबाला को न देखा, तब बड़े क्रोधित हुए और नौकरों को धमकाते हुए उनसे पूछा- “अरे, सच बतलाओ कि चन्दनबाला कहाँ है ? जल्दी बताओ, नहीं तो में तुम सबको बड़ा कड़ा-दण्ड दूंगा"। तब एक वृद्ध स्त्री ने हिम्मत करके सारी बात सच-सच कह दी।
यह सुनकर सेठ को अपार-दुःख हुआ। वे बोल उठे "मुझे जल्दी वह जगह बतलाओ, जहाँ मेरी प्यारी बेटी चन्दनबाला कैद है"। फिर कहने लगे -"आह, ओ दुष्टा-स्त्री ! ऐसा नीच काम करने की तुझे क्या सूझी?"
उस बुढ़िया ने वह कमरा बतलाया, अतः सेठ जी ने तुरन्त उसका दरवाजा खोल डाला। भीतर घुसकर देखते हैं कि चन्दन
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