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चन्दनबाला ]
[ १६ हवा चल रही है । बेचारे पशु-पक्षी भी गर्मी से कष्ट पा
- ऐसे समय में गर्मी से अकुलाकर सेठजी घर आये। घर आकर, उन्होंने इधर-उधर देखा, किन्तु पैर धोने के लिये कोई नौकर वहाँ हाजिर न दिखाई दिया। चन्दनबाला इस समय वहीं खड़ी थी, वह सेठजी की इच्छा समझ गयी । अत्यन्त नम्र होने के कारण, वह स्वयं पानी लाकर पिता के पैर धोने लगी। पैर धोते समय उसकी काली-भंवर चोटी छूट गई और बाल नीचे कीचड़ में जा पड़े। सेठ ने देखा कि चन्दनबाला के बाल कीचड़ में खराब हो रहे हैं, अतः उन्होंने लकड़ी से उठा लिया और प्रेम से बाँध दिया। - मूला सेठानी खिड़की में खड़ी-खड़ी यह दृश्य देख रही थीं। यह देखकर उनके हृदय की शंका और अधिक पूष्ट होगई। वह विचारने लगी कि-'सेठने इसका जूड़ा बाँधा, यही प्रेम की निशानी है, अत. मुझे समय रहते चेत जाना चाहिये । यदि मैं इस मामले को बढ़ने दूँगी, तो अन्त में यह मुझे ही दुःखदायी होगा।" ऐसा विचार कर वे नीचे आई और सेठजी को भोजन कराया। . . सेठजी ने भोजन करने के पश्चात् थोड़ी देर आराम किया और फिर बाहर चले गये।
- इस समय में मूला ने अपना काम शुरू किया। एक नाई को बुलाकर, चन्दनबाला के सिर के सारे बाल कटवा डाले। सिर मुड़ाने के बाद उसके पैर में बेडियां डाली और उसे दूर के एक कमरे में ले गई, वहाँ उसे खूब मारा-पीटा और अन्त में दरवाजा बन्द कर दिया।
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