SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन कथा संग्रह ] [ १८ वसुमती यह सुनकर बहुत दुःखी हुई। उसके नेत्रों के सामने उसके माता-पिता मानों दिखाई से देने लगे ! कहाँ तो एक दिन वह चम्पा नगरी की राजकुमारी थी और कहां आज कौशाम्बी की सड़क पर बिकी हुई दासी ! वह कुछ भी उत्तर न दे सकी । धनावह सेठ ने जान लिया कि इस कन्या का कुल बड़ा श्रेष्ठ है, अतः यह बतलाना नहीं चाहती। बेचारी को इस प्रश्न से बड़ा दुःख हुआ मालूम होता है । यों सोचकर, उन्होंने फिर कभी इस विषय में कोई प्रश्न न किया । घर आकर सेठ ने अपनी स्त्री मूला से कहा - "प्रिये ! यह हम लोगों की कन्या है, इसे अच्छी तरह रखना " । मूला उसे अच्छी तरह रखने लगी । वसुमती यहाँ अपना सा घर जानकर ही रहने लगी और अपने मीठे वचनों से धनावह सेठ तथा अन्य लोगों को आनन्द देने लगी । इसके वचन चन्दन के समान शान्ति देने वाले होते थे, अतः सेठ ने उसका नाम 'चन्दनबाला' रख दिया । चन्दनबाला कुछ दिनों के बाद युवती होगई। यो हो सुन्दरी थी. जिस पर युवा अवस्था ने उसके भो दूना कर दिया था । एक तो वह सौन्दर्य को और यह देखकर मूला सेठानी विचारने लगों कि " सेठजी ने इसे अभी तो लड़की मानकर रखा है, किन्तु इसके होकर वे अवश्य इससे विवाह कर लेंगे । यदि मानों मेरो जिन्दगी ही मिट्टी में मिल गई ।" के कारण मूला सेठानी चिन्ता में पड़ गई । Jain Educationa International ग्रीष्म ऋतु आई । सिर फाड़ने वाली गर्मी मिट्टी के गोले के गोले हवा में उड़ रहे हैं। आग के For Personal and Private Use Only रूप पर मोहित ऐसा हो गया, तो ऐसे-ऐसे विचारों पड़ रही है । समान गर्म www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy