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________________ चन्दनबाला ] [ २१ बाला के पैर में बेड़ी हैं और उसका सिर मुड़ा हुआ है । उसके मुंह से नवकार मंत्र की ध्वनि निकल रही है और नेत्रों से आँसुओं की धार बह रही है। कमल को कुम्हलाने में कितनी देर लगती है ? चन्दनबाला का सारा शरीर अब तक के कष्टों से कुम्हला गया था। यह दशा देखकर सेठ के नेत्रों से टपटप आँसू गिरने लगे। वे रोते-रोते बोले -"प्यारी चन्दनबाला ! शान्त होजा! बेटा ! त बाहर चल, मुझसे तेरी यह दशा नहीं देखी जाती। तझे तीन दिन के तो उपवास ही हो गए ? हाय, मुझे ऐसी दुष्टा-स्त्री मिल गई ?"। यों कह कर सेठ जी रसोईघर में भोजन ढूढ़ने लगे। किन्तु भाग्यवश वहां खाने का सामान कुछ भी न मिला । केवल एक सूप के कोने में थोड़ी-सी उड़द की घूघरी पड़ी थी। सेठ ने वह सूप चन्दनबाला को दिया और कहा- 'बेटा! मैं तेरी बेड़ी काटने के लिए लुहार को बुला लाऊँ, तब तक तू इस घूघरी का भोजन करले" । यों कह कर सेठ बाहर चले गए। चन्दनबाला देहरी पर बैठ गई । उसका एक पैर भीतर की तरफ था और दूसरा बाहर । यों बैठकर वह विचारने लगी"अहो ! मनुष्य जीवन के कितने रङ्ग होते हैं। जो मैं एक दिन राजकन्या थी, उसकी आज यह दशा है। तीन-दिन के अन्त में, आज ये उड़द के उबले हुए दाने खाने को मिले हैं ! किन्तु बिना अतिथि को दिये इनका भी खाना ठीक नहीं है। यदि इस समय कोई अतिथि आजायँ तो बहुत अच्छा हो । इस भोजन में से थोड़ा सा उन्हें देकर फिर मैं खाऊँ।" आज पाँच महीने और पच्चीस-दिन होगये, कौशाम्बी में एक महायोगी भिक्षा के लिए घूम रहे हैं । लोग उन्हें भिक्षा देना चाहते हैं, किन्तु वे योगीराज भिक्षा देने वाले की तरफ देखकर वापस लौट जाते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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