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चन्दनबाला । - एक बार राजा-रानी जल्दी उठकर इष्टदेव का स्मरण कर रहे थे। इसी समय कुछ सिपाही दौड़ते हुए आये और प्रणाम करके हांफते हाँफते कहने लगे-"महाराज ! महासज!कौशाम्बी के राजा शतानिक की सेना चढ़ आई है। हमने नगर के सब दरवाजे बन्द कर दिए हैं । अब फरमाइये कि आपकी क्या आज्ञा है।"
राजा ने कहा-"लड़ाई के नगाड़े बजवाओ और लड़ने की तैयारी करो।" .
... जोर-जोर से लड़ाई के नगाड़े बजाये गए। युद्ध के नगाड़ों की गड़गड़ाहट सुनकर सब लोगों को थोड़ी ही देर में यह मालूम हो गया कि नगर के चारों तरफ शत्रु का घेरा पड़ गया है । अतः सब लोग लड़ने को तैयार हो गये । .. वे तैयार किस तरह हुए ?
शरीर पर जिरह-बख्तर पहने और कमर में चमकती हुई तलवारें बाँधी । कन्धों पर ढालें लटकाई और वाणों के तरकस बांधे। एक हाथ में धनुष लिये और दूसरे में तेज भाले।
इस तरह तैयार होकर सब योद्धा मगर के कोट पर चढ़ गये और वहां से तीर मारने लगे । सनसनाहट करते हुए वाणों की वर्षा सी होने लगी। _ वाण लगते ही मनुष्य मर जाते । किन्तु शत्रु सेना बहुत बड़ी थी, उसमें से यदि दो-चार मर भी गए तो क्या हो सकता था? वह तो. टिड्डी-दल की भांति बढ़ती चली ही आ रही थी।
थोड़ी ही देर में सेना कोट के समीप आगई। कोट के नीचे खाई थी, जिसमें पानी भरा था। किन्तु शत्रु सेना के पास तो लकड़ी के पुल और बड़ी-बड़ी सीढ़ियां थीं, जो उन्होंने कोट के किनारे किनारे बड़ी करदी।
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