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[ जैन कथा संग्रह पर काबू न चला, सो न चला उसके मन में यह हसरत साध थी कि चाहे जो हो प्रताप को अवश्य आधीन करना चाहिये।
मेवाड में चित्तौड का क्लिा एक प्रख्यात और बडा मजबूत किला माना जाता था । अकबर ने राणा प्रताप के पिता से वह किला ले लिया था। प्रताप ने निश्चय किया-यह किला न ल तो मेरा नाम प्रताप नहीं । व्रत लिया जब तक किला वापस न ले लूगा, तब तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूंगा घास के बिछोने पर सोऊंगा, पत्तों में भोजन करूंगा। और दाढ़ी में कंघी न करूंगा। आहा ! कितनी कठोर प्रतिज्ञा थी ?
__भामाशाह ने भी निश्चय किया, जो व्रत राणा ने लिया है वही मैं भी लूगा। अरे, हमारे देवतुल्य राणा तो सोयें घास पर, और हम गद्दे पर यह कैसे हो सकता है ? वे खाये पत्तल पर और हम थाली में, यह नहीं हो सकता।
राणा के कुटुम्बियों ने भी भामाशाह का अनुकरण किया। अकबर राणा प्रताप पर विजय पाने का अवसर सदैव ही खोजता रहता था। एक बार, उसने उसके मुकाबले के लिये एक बड़ी सेना भेजी हाथी, घोड़े और ऊंटों की गिनती न थी, पैदल सेना की शमार न थी। शाहजादा सलीम सेनापती था, और राजा मानसिंह उसका सहायक।
भामाशाह को इसका पता चल गया । वे घोड़े पर सवार होकर तुरंत राणा के पास पहुंचे और नमस्कार करके कहा-महाराज! जल्दी तैयार हो जाइये । शत्रु ने भारी. लश्कर लेकर चढ़ाई कर दी है अब देर न कीजिये।
राणा प्रताप ने कहा-अच्छा, भामाशाह ! तुम जाकर लश्कर
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