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दानबीर भामाशाह ]
[ १५३ यार करो और नगर में मनादी घोषणा करा दो-"जिसके हृदय 'देश का दर्द हो, मातृभूमि का प्रेम हो, जो सच्चा वीर हो, वह जिमहल के चौक में जल्द हाजिर हो जाय ।" ____ भामाशाह ने घोड़े को ऐंड़ लगाई, घोड़ा सरपट हो गया। ग देखकर आश्चर्य करने लगे, कि यह बुढ्ढ़ा है या जवान ? जिसने माशाह को देखा, लड़ाई के जोश से भर गया।
भामाशाह ने सरदारों और सेनापतियों को समाचार दिया, गर में मनादी घोषणा करादी । लोग राजमहल के पास वाले मैदान जमा होने लगे। बात की बात में ६०००० वीर जान पर खेलने मे तैयार हो गये।
अपने सजे हुए घोड़े पर सवार होकर राणा प्रताप भी आ पहुँचे । रीर पर लोहे का कवच है, हाथ में भयंकर भाला है, कमर में दो . लवारें लटक रही हैं। राणा वीरता की साक्षातमूर्ति दिखलाई ते हैं। कायर का हृदय भो उन्हें देखकर उमंग से भर जाता है । . राणा के आते ही आकाश जयनाद से गूंज उठा- 'महाराणा
की जय' ! मातृभूमि की जय !! राणा ने सबको वीरोचित स्वर सम्बोधित किया-वोर पुत्रो ! न हम किसी को गुलाम बनाना हते हैं, न किसी का राज्य छीनना चाहते हैं । हम मातृभूमि की
धीनता के लिये, मान रक्षा के लिये लड़ने को, वलिदान होने । तैयार हो रहे हैं । सत्य हमारे साथ है, ईश्वर हमारा सहायक है। भारी अवश्य विजय होगी। दोनों ओर के लश्कर आमने-सामने आ है। डंके पर चोट पड़ी. वीरों के हृदय उछल पड़े। तलवारें सनताने लगीं। हल्दीघाटी के रणक्षेत्र में तुमल युद्ध होने लगा। वीरों जान हथेली पर रख ली। लहू की नदियां बह चलीं, लाशों के बार लग गये । ओह, कितना भयंकर युद्ध था, कितना प विकराल था !
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