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________________ २०- दानवीर भामाशाह मैवाड़ के राणा प्रताप का नाम कौन नहीं जानता ? वे अपनी आन के और बात के पक्के थे । कभी एक शब्द भी मिथ्या न बोलते, और जो कहते उससे कभी फिरते न थे । साधु के समान सरल और सिंह समान वीर थे । दीन दुखियों के सहायक और अनाथों के नाथ थे । उनके एक-मन्त्री का नाम 'भामाशाह' था । पहुँची हुई उमर, सफेद दाढ़ी, विशाल मस्तक और तेज-पुंज मुख-मन्डल देखते ही श्रद्धा से लोगों का मस्तक झुक जाता था। कहने के लिये वृद्ध थे, पर युवकों को मात करते थे । बुद्धि के भंडार, शक्ति के सागर थे। राज्य में कोई प्रश्न उपस्थित हो, प्रजा को कोई कठिनाई आ पड़े, सबका निराकरण करने वाले थे-भामाशाह । किसी को न्याय चाहना है, जाओ भामाशाह के पास । किसी को सत्परामर्श की आवश्यकता है, जाओ भामाशाह के पास । कोई किसी कठिनाई में आ पड़ा है, जाओ भामाशाह के पास । सब उसका आदर सम्मान करते थे, और वह सबका शुभचिन्तक था। राजा प्रताप भी पग-पग पर उनका परामर्श लेते थे। उनकी बुद्धि और शक्ति में सबको विश्वास था। राज-काज हो या घर की कोई बात, सभी बातों में भामाशाह का कहना चलता था। . दिल्ली के बादशाह अकबर के साथ राणा प्रताप की शत्रुता थी । अकबर जितना, बलवान था उतना ही नीति कुशल था । बड़े. बड़े राजों को उसने वशीभूत कर लिया था। परन्तु प्रताप ने उसके सामने सिर नहीं झुकाया । अकबर ने बहुतेरे यत्न किये । पर राणा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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