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[ जैन कथा संग्रह में बैठाकर, चांपानेर ले गए । दूसरे दिन, चांपसी मेहता तथा अन्य महाजन लोग, खेमा सेठ को लेकर कचहरी में पहुंचे।
खेमा सेठ ने तो वही अपना फटा टूटा कुर्ता पहन रखा था, तथा फटी हुई पगड़ी सिर पर बांध रखी थो, और हाथ में एक छोटी सी गठरी लिए हुए थे। . चापसी मेहता ने बादशाह से कहा, कि-"ये सेठ गुजरात को ३६० दिनों के लिए मुफ्त अन्न देंगे।" बादशाह इस मैले कुचले बनिए को देखकर बड़े आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने खेमा से पूछा कि-"तुम्हारे कितने गांव हैं ?" ।
खेभा ने कहा-"केवल दो।" बादशाह-कौन-कौन से ?
खेमा सेठ ने अपनी गठरी खोलकर उसमें से एक पली तथा तराजू निकाली और बादशाह से कहा, कि-"एक तो यह पली है दुसरी है तराजू । इसी पली से तो हम घी तेल बेचते हैं और तराजू से अनाज खरीदते हैं।"
"बादशाह, यह देखकर बड़े प्रसन्न हुए और खेमा सेठ की बड़ी तारीफ की।
खेमाशाह ने एक बर्ष तक सारे गुजरात को मुफ्त में अनाज बाँटा, जिससे लाखों मनुष्य भूखों मरने से बच गये और खेमाशाह को आशीर्वाद देने लगे। ___ खेमाशाह को उदार-दानशीलता धन्य है।
धीरे-धीरे गुजरात से वह दुष्काल दूर हो गया । अब खेमाशाह ने शत्रुञ्जय की यात्रा की, फिर पवित्र जीवन व्यतीत करते हुए उन्होंने अपनी आयु पूर्ण की। इसी दानवीर के समय से यह कहा. वत चली है, कि-'व्यापारी है पहला शाह, दूजा शाह बादशाह।" पहले शाह, फिर बादशाह ! ..
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