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श्री गौतम स्वामी ]
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सोचने लगे-जिन्हें जिन्हें मैंने उपदेश किया है जब उन्हें थोड़े ही समय में श्रेष्ठ आत्म ज्ञान प्राप्त हो गया, तो क्या मुझे श्रेष्ठ केवलज्ञान प्राप्त नहीं होगा ? वे यह विचार कर ही रहे थे कि इतने ही में भ०महावीर से उन्होंने सुना-जो मनुष्य अष्टापद पर्वत पर चढ़कर वहाँ के मंदिरों के दर्शन करता है उसे अवश्य श्रेष्ठज्ञान (केवल ज्ञान ) प्राप्त होता है।"
गौतम स्वामी ने अष्टापद पर्वत पर जाने का विचार किया और प्रभु महावीर के सम्मुख जाकर वन्दना करके बोले-प्रभो ! मेरी अष्टापदजी पर आने की इच्छा है, आज्ञा दीजिए। प्रभु महावीर जानते थे कि गौतम के वहां जाने पर उसे केवलज्ञान प्राप्त होगा और वह अन्यों को भी बोध देगा, अतएव उन्होंने कहा-गौतम, जिससे तुम्हें सुख मिले, वही काम करो।।
गौतम स्वामी वहां से चल दिए, थोड़े समय पश्चात् अष्टापद पहुँचे वे और अपनी विद्या के बल से ऊपर चढ़ने लगे।
इसी समय कितने ही तापस अष्टापद पर चढ़ने का यत्न कर रहे थे, परन्तु उनमें श्री गौतम के समान शक्ति नहीं थो, अतएव वे थोड़ा चढ़कर ही थक गये थे। वे तेजपुंज गौतम स्वामी को देखकर आश्चर्य करने लगे । ओहो! यह हृष्टपुष्ट शरीर होते हुए भो किस प्रकार अष्टापद पर चढ़ रहा है । गौतम अष्टापद के शिखर पर पहुँचे, वहाँ २४ तीर्थ करों के मन्दिर थे, अहो, कितने सुन्दर और कितने पवित्र । उनमें प्रत्येक तीर्थ कर के शरीर के बराबर ही भव्य मूर्तियों के दर्शन करके मधुर स्वर में स्तुति को:
जग के चिन्तामरिण एक जिनराज जी, जगगुरु जगनाथ हो जिनेश जी । जग के चिन्तामणि एक जिनराज जी ।
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