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[ जैन कथा संग्रह
जग के वे रक्षक जग के वे बन्धु, जग का देते वे साथ हो जिनेश जी । जग के चिन्तामणि एक जिनराज जी । जाने जग की सब ही वे बातें, ज्ञानी हैं वे भरपूर हो जिनेश जी । जग के चिन्तामणि एक जिनराज जी। अष्टापद में जिनके बने भव्य मंदिर, किये करम चकचूर हो जिनेश जी । जगत के चिन्तामणि एक जिनराज जी। फैली कीर्ति सब जग में जिनकी, दो दश, आठ अरु चार हो जिनेश जी । जग के चिन्तामणि एक जिनराज जी । कदापि भंग न जिनका शासन होगा, बंदु तिन्हें बारम्बार हो जिनेश जी,
जग के चिन्तामणि हो जिनराज जी । फिर अशोक वृक्ष के नीचे रात बिताकर दूसरे दिन प्रातःकाल मन्दिरों के दर्शन करके वे नीचे उतरे।
रास्ते में तपसी उनकी प्रतीक्षा ही कर रहे थे कि महात्मा कब वापस आवें और कब हम उनके शिष्य बनें। गौतम स्वामी के आते ही सबने मस्तक झुकाकर प्रणाम किया, और हाथ जोड़ कर शिष्य बनाने की प्रार्थना की।
श्री गौतम स्वामी ने उन सब (१५००) को शिष्य बनाया। भोजन के समय वे खीर का एक पात्र (भिक्षा पात्र) भरकर लाये।
सब शिष्य परस्पर कहने लगे-इस पात्र में से १५०० का पारणा किस प्रकार होगा ? गौतम स्वामी ने कहा-सब एक पंक्ति
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