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________________ १८ दानवीर जगडूशाह ( १ ) 1 कच्छ देश में भद्रेश्वर नामक एक ग्राम है। इस ग्राम में एक सेठसेठानी रहते थे । सेठ का नाम था सोलक और सेठानी का लक्ष्मी । इनके तीन लड़के हुए । इन लड़कों में से एक का नाम जगडू, दूसरे का नाम राज, और तीसरे का पद्म था । ये तीनों भाई बड़े साहसी और चतुर थे | योग्य अवस्था होने पर इन तीनों का विवाह अच्छे घराने की कन्याओं के साथ कर दिया गया । जगड्डू का यशोमती के साथ, राज का राजलदे के साथ, और पद्म का पद्मा के साथ विवाह हो गया । लड़के, अभी बीस वर्ष की अवस्था के भीतर के ही थे, कि सोलक श्रावक का देहान्त होगया । तीनों भाइयों को इससे बड़ा दुख पहुँचा । किन्तु शोक करने से क्या लाभ हो सकता था ? जगडू. ने धीरज धारण करके घर का सारा काम-काज अपने सिर पर उठा लिया । तीनों भाइयों में जगत बड़ा चतुर था। उसका दिल बड़ा विशाल तथा हृदय प्रेम से लबालब भरा था । दान करने में तो उसकी जोड़ी का कोई था ही नहीं । कोई भी दीन-दुखी अथवा मंगते - भिखारी उसके दरवाजे पर आकर खाली हाथ न जाने पाते थे । जगड्डू यह बात समझता था, कि धन आज है और कल नहीं, अतः उससे लाभ उठा लेना ही चाहिये । यही कारण था कि दान देने में वह कभी पीछे नहीं रहता था । धन, धीरे-धीरे कम होने लगा, अब जगड्डू को यह चिन्ता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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