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[ जैन कथा संग्रह थे, कि राजा को ठीक-ठीक सलाह देते और वही करते, जिससे राजा एवं प्रजा का कल्याण हो ।
कुमारपाल ने इन्हीं गुरूराज के कहने से, बांझ (निपुत्री) मनुष्यों का धन लेना बन्द कर दिया। उसकी केवल लगान की ही आमदनी प्रतिवर्ष ७२ लाख रुपये की थी । अपने शासन के अन्तर्गत अठारहों देशों में जीव-हिंसा न करने का हुक्म दे दिया। सोमनाथ महादेव मन्दिर को ठीक करवाया और दूसरे अनेक छोटे-बड़े मन्दिर तथा प्रजा के लिए उपयोगी स्थान बनवाये, सबका हित साधन किया।
___ तारंगा, ईडर, धंधुका वगैरह के मन्दिर इन्हीं के बनवाये
कुमारपाल के राज्य में दुष्काल का कहीं नाम भी न था, और न चोर डाकूओं का भय ही था। सब लोग आनन्द पूर्वक रहते थे । अठारहों राज्य आपस में मेल करके रहते और शिकार की बन्दी होने के कारण पशु-पक्षी भी निर्भय होकर विचरते थे।
कुमारपाल दिनों-दिन धर्माराधना द्वारा अपना जीवन पवित्र करने लगे, और अन्त में उन्होंने अपने मन, वचन तथा काया को अत्यन्त पवित्र बना लिया, जिससे वे "राजर्षि" कहे जाने लगे। उनके किये हुए शुभ कार्यों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :
१४०० जैन मन्दिर बनवाये, १६०० पुराने टूटे-फूटे मन्दिरों का उद्धार करवाया। सात बार तीर्थ यात्रा की, जिसमें पहली यात्रा में नौलखी पूजा की। निर्वंश मरने वालों का धन लेना बन्द किया, और प्रतिवर्ष एक करोड़ रुपया शुभ कार्यों में खर्च किया। २१ ज्ञान-भंडार स्थापित किये और लाखों प्रतियाँ लिखवाई। ७२ सामन्तों पर अपनी आज्ञा चलाई और अठारह देशों में पूर्णरूपेण अहिंसा पलवाई।
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