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कुमारपाल ]
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तीस वर्ष तक राजर्षि कुमारपाल ने राज्य किया। और इतने समय में सब जगह सुख-शान्ति फैलाई तथा प्रजा की बड़ी तरक्की की। कुछ दिनों के बाद, उनके गुरूराज हेमचन्द्रा पूरि की देह छूट गई, अतः वे बड़े दुःखी हए । इस शोक का उनके शरीर पर बड़ा प्रभाव पड़ा। अब उनकी अवस्था भी ८१ वर्ष की हो चुकी थी, अत: वे भी मृत्यु को प्राप्त हुए।
कुमारपाल के समान राजा और श्री हेमचन्द्राचार्य के समान गुरू उस जमाने में और कोई नहीं हुए। इन दोनों को जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है।
- आचार्य हेमचन्द्र पूरि राजा सिद्धराज द्वारा भी सम्मानित थे। सिद्धराज के अनुरोध से हो उन्होंने सिद्धहेम व्याकरण' नामक महान सर्वाङ्गपूर्ण व्याकरण बनाया। महाराजा कुमारपाल के लिये उन्होंने 'योगशास्त्र' की रचता की, और भी अनेकों विषयों के महत्वपूर्ण ग्रन्थ उन्होंने बनाये हैं। 'कलिकाल सर्वज्ञ' उनकी विशिष्ट उपाधि थी जो उनकी एक अद्वितीय विद्वत्ता की सूचक है। आचार्य हेमचन्द्र और कुमारपाल के सम्बन्ध में अनेकों ग्रन्थ रचे गये हैं । यहां तो बहुत ही संक्षेप में लिखा गया है।
जैन धर्म का वह स्वर्ण युग था। युग प्रधान दादा श्री जिनादत्त पूरि आदि अनेकों प्रभावशाली जैनाचार्य उसी समय में हुए हैं। अनेकों मन्दिर-मूर्तियां बनीं। खूब साहित्य रचा गया। लाखों लोग जैनी बने। जन-जन में जैन धर्म का प्रभाव बढ़ा। अहिंसा धर्म खूब फला-फूला।
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