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[ जैन कथा संग्रह
सेना ने वहां पहुँचकर उदायन के मकान की तलाशी लेनी शुरूकी. अतः कुमारपाल वहां से निकल कर उपासरे में आये और पुस्तकों के भंडार में छिप गये। सेना के सिपाही उपाश्रय में भी आ धमके । किन्तु कुमारपाल का पता न लगा, अतः वापिस लौट गये।
ज्ञानी गुरू श्री हेमचन्द्राचार्य ने कुमारपाल से कहा, कि-"अब तुम्हारे दुःख के दिन अधिक नहीं हैं, थोड़े ही दिनों के बाद तुम्हें मजरात का राज्य मिल जायगा।" कुमारपाल अपनी दशा का ध्यान करके बोला, कि-"गुरू महाराज ! यह बात कैसे मानी जा सकती है ?" तब आचार्य महाराज ने उन्हें ऐसा ही होने का विश्वास दिलाया, जिसे सुनकर कुमारपाल ने कहा कि-"यदि आपका वचन सत्य हो जावेगा, तो मैं जैन धर्म का पालन करूंगा।" इसके बाद उदायन मन्त्री से कुछ राह खर्च लेकर कुमारपाल दक्षिण की तरफ चल दिये।
इस तरह बड़ी दूर तक ग्रमण करके कुमार पाल अपने कुटुम्ब से मिलने मालवा को चले गये। वहाँ पहुँचने पर उन्हें मालूम हुआ कि सिद्धराज मृत्यु शैया पर पड़े हैं । अतः वे अपने कुटुम्ब को लेकर गुजरात में आये।
सिद्धराज मृत्यु-शंया पर पड़े थे। वहां पड़े-पड़े उन्होंने उदायन मन्त्री के पुत्र बाहड़ को गोद लिया। वे यह व्यवस्था कर रहे थे कि राज्य कुमारपाल को न मिलकर बाहड़ को मिले । किन्तु इसी बीच में उनकी मृत्यु होगई। यह समाचार सुनते ही कुमारपाल पाटण आये । राज-सभा कुमारपाल की योग्यता जानती थी, अतः उसने इन्हें ही राजगद्दी पर बैठा दिया। कुमारपाल जिस समय गद्दी पर बैठे, उस समय उनकी अवस्था ५० वर्ष की थी। भाग्य ने उनको आखिर राजा बना ही दिया, सिद्धराज की कुछ भी न चली।
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