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म० कुमारपाल ]
[ १०५ उसे दया आई, अतः उसने इन्हें खाने को दिया। इस भोजन से कुमारपाल को कुछ शान्ति मिलो । उन्होंने उस बहिन से कहा कि"बहिन जी ! मैं कभी भी आपका उपकार न भूलूगा।"
यहां से चलकर कुमारपाल अपने ग्राम देथली को गये। सिद्धराज को यह मालूम होते ही उन्होंने अपनी सेना भेजी । इधर कुमारपान को भी सेना के आने की बात मालूम होगई, अतः वे अपने लिए छिपने की जगह ढूढ़ने लगे। उस समय सज्जन नामक कुम्हार ने उन्हें अपने आंवे में छिपा दिया। राजा की फौज को कुमारपाल का पता न लगा, अतः वह निराश होकर वापिस लौट गई।
__ "जाको राखे साइयां, मारि सके ना कोय ।"
कुमार पाल, यहां से अपने कुटम्ब को मालवे की तरफ भेजकर खुद परदेश में घूमने निकल गये। वहाँ बोसिरी नामक ब्राह्मण से मित्रता होगई। वह ब्राह्मण गांव में से भिक्षा मांगकर लाता
और कुमारपाल को खिलाता था। किन्तु यह सुविधा भी अधिक दिनों तक नहीं रही। कुछ दिनों बाद वोसिरी का भी साथ छूट गया, जिससे कुमारपाल को कष्ट होने लगा। वे घूमते-घूमते फटेहाल होकर भूख की पीड़ा सहते और कष्टों से परेशान होते हुए खम्भात पहुंचे।
___ वहाँ श्री हेमचन्द्राचार्य नामक प्रसिद्ध जैनाचार्य थे। उनका ज्ञान अगाध और चारित्र बड़ा निर्मल था। उन्होंने कूमारपाल के लक्षणों को देखकर जान लिया कि भविष्य में यह गुजरात का राजा होगा । अतः उन्होंने खंभात के मन्त्री 'उदायन' के यहां कुमारपाल को आश्रय दिलवाया।
___ यह हाल मालूम होते ही सिद्धराज का लश्कर कुमारपाल को ढूढ़ने आ पहुँचा।
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