________________
( ८५ ) प्रमाजेन करना आवश्यक है। इस बात की हर समय ध्यानमें रखनी चाहिये।
(१०) प्रातःकाल एवं सायंकालमें दर्शन करनेके पश्चात अंग पूजा नहीं की जाती है। इसलिये मूलनायकजी आदि सर्व बिम्बोंका अच्छी तरह दर्शन करके प्रभुजीके सामने दाहिनी
ओर ३ खमासमण देकर, चैत्यबंदन के प्रारम्भ में तीसरोवार 'निस्सिहो' कहनी चाहिये। यह 'निस्सिहो' जिन दर्शन व पूजा सम्बन्धी व्यापार को त्यागसूचक है। अब केवल भाव पजा ही करने की है। इसलिए द्रव्य-पूजा का त्याग कियो जोता है। प्रभुके निकट जो अक्षत्, फन नैवेद्यादि रखे जाते है वे चैत्यबंदन करनेके पहिले ही रख देने चाहिये। क्योंकि चैत्यबंदन करते समय तो द्रव्य पजो सम्बन्धी कोई भी प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिये, उस समय तो सिर्फ प्रभुजीके सामने दृष्टि लगाकर एकाग्रचित्त से प्रभुजीके गुणों की स्तुति करनी चाहिये । इस
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org