________________
समण सच्चा नहीं समझा जाता है) इसमें तोनों ही प्रकार के प्रणामों का समावेश हो जाता है।
(७) प्रणाम करते समय प्रभु की स्तुति, संस्कृत, मागधो गुजराती व नागरी (हिन्दी) श्लोक, गाथा, छन्द, दोहा इत्यादि से करनी चाहिये। उस समय एकसे लगाकर एकसौ आठ १०८ श्लोकादि तक बोलना चाहिये, लाथही शब्दोच्चारण शुद्ध होना चाहिये अर्थका बराबर चिन्तवन करना चाहिये एवं प्रभुजी की प्रतिमा के सन्मुख अचल दृष्टि लगाये रखनी चाहिये। इस त्रिक को चैत्यबंदनादि के समय भी ध्यान मं रखना चाहिये।
(८) दर्शन करनेके समय इधर उधर तथा पीछे की ओर देखना नहीं चाहिये, केवल परमात्मा ही के सामने दृष्टि जोड़े रखनी चाहिए।
(E) खमासमण देते समय पैर, गोड़े एवं हाथ रखने की जमीन को उत्तरासन के छोरसे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org