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करते समय भी इसी दिशा - विभाग को काममें लाना चाहिये तथा रंग मंडप से भी इसी तरह अपनी २ दिशा के द्वार से बाहिर निकलना चाहिये । प्रभूजी के सामने खड़े रहकर तो दर्शन चैत्यवंदनादि करना ही नहीं चाहिये क्योंकि इससे और कईयों के दर्शन में अन्तराय पड़ती है और विवेक भी दीखता है । स्त्री एवं पुरुषोंके निकलने का द्वार पृथक २ होता हैं । और इसी कारण रंगमंडपमें तीन द्वार होते हैं। शाश्वत चैत्योंमें भी तीन द्वार होते हैं। सिर्फ जहां चौमुखी विम्व की स्थापना होती है वहां गर्भगृह के चार द्वार होते हैं ।
(६) दर्शन करते समय पहिले तो अर्द्धांग नमन कर प्रणाम करना चाहिये। हाथ जोड़कर मस्तक में लगाना और पश्चात खमासमण देने के समय दोनों हाथ, दोनों गोड़े और मस्तक इन पांचों अंगो को भूमि पर लगाना चाहिये । (हाथ और मस्तकको अधर रखनेवालोंका खमा
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