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________________ तो प्रायः यह प्रवृत्ति अधिकांश रूपसे लुप्त हो गई है मगर यह प्रधानतया आदरणीय है। (४) तीन प्रदक्षिणा देकर मुख्य द्वारसे रंग मंडपमें प्रवेश करते समय दूसरोवार 'निस्सिही' कहनी चाहिये, यह निस्सही जिनमन्दिर संबंधी व्यापार की त्याग सूचक है। अब केवल जिन दर्शन व पूजन सम्बन्धो व्यापार ही करना रहा है। किसी समय यदि अन्दर आनेके बाद जिन-मन्दिर सम्बन्धी कोई कार्य स्पर्ण हो जावे, तो रंग मंडा से बाहिर निकल कर उस कार्यको करना व कराना चाहिये लेकिन अन्दर खड़े रहकर कोई हुक्म नहीं देना चाहिये। __ (५) रंग मंडपमें प्रवेश करनेके पश्चात, गर्भ गुह के समीप जाकर पुरुषवर्गको प्रभुजी की दाहिने तरफ एवं स्त्रीवर्ग को बांई तरफ खड़े रह कर दर्शन करना चाहिये। चैत्यबंदनादि १ इस विधि मार्गको तरफ लक्ष्य न देनेके कारण भीड़में कायों को दर्शन तक नहीं हो पाते और स्त्री पुरुष एक जगह बैठने से शिष्टाचार का भी भंग होता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003826
Book TitleJinraj Bhakti Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanmal Shankardan Nahta
PublisherDanmal Shankardan Nahta
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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