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इन ५ अभिगमनों के अलावा राजाओंके लिए खड़ग, छत्र समझना चाहिये। जूते, मुकुट और चामर का त्याग करना चाहिये। इसी तरह साधारण लोगोंको लकड़ी, घड़ो, छत्ता, जूते वगैरह बाहिर छोड़ देना चाहिये। मोजे पहिन कर जिन-मन्दिर में प्रवेश करना उचित नहीं है (कारण कि यह भी एक तरह की पगरखी है)।
(२) इस तरहसे ५ अभिगमनों को साचव कर जिन-मन्दिरमें प्रवेश करते ही पहिले अग्रद्वारमें अन्य सब गृह-व्यापारादि की त्यागरूप 'निस्तिही' कहनी चाहिये। इसके पश्चात अन्य कार्य सम्बन्धी कोई भी आलाप-संलाप नहीं करना चाहिए। जिन-मन्दिर में आनेवाली स्त्रियों एवं रात्रिमें जिनमन्दिर की छत पर रहनेवाले पुरुषोंको अन्य किसी भी प्रकार की बातचीत नहीं करनी चाहिए। उन्हें स्मर्ण रखना चाहिये कि उन्होंने स्वयं ऐसी ही प्रतिज्ञा
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