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( ७६ ) लक्षण से कोई भी भोजन के काम में आने वाली वस्तु जिन-मन्दिरके गढ़में नहीं ले जानी चाहिये । इससे जिन-पूजा के निमित्त जल, पुष्प, फलादि का निषेध नहीं समझना, बल्कि अपनी शोभा की पुष्प मालादि का त्याग कर देना चाहिये। ___ अचित्त वस्तु तथा उपलक्षण से शरीर की शोभा के साधन लेने चाहिये। जिन-पूजा में आभूषणोंके त्याग की तो आवश्यकता नहीं, परन्तु राजचिन्ह जैसे मुकुट कुंडल वगैरह का त्याग आवश्यक है। अर्थात ऐसी चीजें जिनमन्दिर के बाहर रख देनी चाहिये।
मनको एकाग्रता व स्थिरता रखनी चाहिये।
प्रभु की मूर्ति दृष्टि में पड़े उसी समयसे ही दोनों हाथ जोड़े रहना चाहिये।
एक वस्त्र का उत्तरासन करना चाहिये (यह उत्तरासन चैत्यबंदनादि के समय भूमि प्रमार्जन के उपयोग में आता है)
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