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( ७७ ) पीछे पूजाके वस्त्र पहिननेके प्रथम एक ऊनी वस्त्र (कंबली) पहिनना चाहिए कि जिससे शरीर सर्वथा निर्जल हो जावे। पूजा के वस्त्र यथा सम्भव स्वच्छ और श्वेत होने चाहिये। ये वस्त्र पूजाके पश्चात प्रतिदिन धोये जांय ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए। इसी कारण से हर रोज के लिए सूती वस्त्र हों तो और भी अनुकूल होंगे। पर श्रीमन्त तो रेशमी वस्त्र भी रख कर नित्य धुला सकते हैं। आत्मा याने जीवकी जिसमें स्थिति रही हुई है।
स्नान के समय के वस्त्र को छोड़कर, दूसरे वस्त्र को पहिन कर जिनेश्वर देवका स्मर्ण करता हआ, जब तक भीगे पैर रहें तब तक वहीं खड़ा रहे क्योंकि भीगे पैर धरती पर रखने से मैल पैरों पर लग जायगा और इससे वे फिर अपवित्र हो जायगे एवं गीले पैरों से जीव का संसर्ग होनेसे जीव विराधना होगी जिससे महान् पाप होगा।
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